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  • Writer's pictureJaweria Afreen Hussaini

हम तो बस ऐसे ही हैं।




मीठी-मीठी बातें तो हमें भी आती है लेकिन... वो तहजीब नहीं सीखी जिससे किसी का दिल दुखें...!!

कुछ फ़साने हक़ीक़त से होते हैं... कुछ हक़ीक़तें अफ़साना लगती हैं...!!

नाराज़गी तो थक हार कर लौट गईं कब की... ये जो चलती जा रहीं हैं जिद्दी जिदें है हमारी...!!

कुछ लोग तो बस इसलिए 'अपने' बने हैं अभी, कि कभी मेरी बर्बादियां हों तो दीदार 'करीब' से हो !!

मरहम लगा सको तो गरीब के जख्मो पर लगा देना हकीम बहुत है बाजार में अमीरो के इलाज खातिर !!

ख़ामोश सा शहर और गुफ़्तगू की आरज़ू हम किससे करें बात कोई बोलता ही नहीं !!

भलाई करते रहिए बहते पानी की तरह बुराई खुद ही किनारे लग जाएगी कचरे की तरह!!

लफ्ज़ों के हेर फेर का धन्धा भी ख़ूब है... जाहिल हमारे शहर के उस्ताद हो गऐ...!!

जिंदगी छोटी नही होती है जनाब; लोग जीना ही देरी से शुरु करते है शोर करते है कुछ लोग सुर्ख़ियों में आने के लिये हमारी तो ख़ामोशी भी एक नया अख़बार है!!

बुझने से जिस चिराग ने इंकार कर दिया...! चक्कर लगा रही है हवा उसी के आस-पास...!!


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